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amazing history about Bhagat Singh

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह
By Anand Banger

Bhagat Singh
अपने 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन के अल्प कालीन जीवन मे जिस महा-मानव ने देश भक्ति के मायने बदल कर रख दिये और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य कैसे निभाया जाता है, इसकी अद्भुत मिसाल दी। भगत सिंह का जीवन चरित्र लाखो नौजवानों को देश और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य पालन की सीख देता रहा है।



क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब प्रांत, ज़िला-लयालपुर, के बावली गाँव मे हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। पाकिस्तान मे भी भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने की तरह याद किया जाता है।

भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।

भगत सिंह के पांच भाई – रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत और तीन बहनें  – प्रकाश कौर, अमर कौर एवं शकुंतला कौर थीं ।

अपने चाचा अजित सिंह और पिता किशन सिंह के साये मे बड़े हो रहे भगत सिंह बचपन से अंग्रेज़ो की ज्यादती और बर्बरता के किस्से सुनते आ रहे थे। यहाँ तक की उनके जन्म के समय उनके पिता जेल मे थे। चाचा अजित सिंह भी एक सक्रीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भगत सिंह की पढ़ाई दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में हुई। भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए  कर रहे थे तभी उनके देश प्रेम और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य ने उनसे पढ़ाई छुड़वा कर देश की आज़ादी के पथ पर ला खड़ा किया।

एक सामान्य नवयुवक के सपनो से अलग भगत सिंह का बस एक ही सपना था – “आज़ादी”। और ऐसा लग रहा था कि भगत सिंह अपने देश अपनी मातृभूमि को अंग्रेज़ो से आजाद कराने के लिए ही साँसे ले र

जलीयांवाला बाग मे शांतिपूर्ण तरीके से सभा आयोजित करने के इरादे से इक्कठा हुए मासूम बेकुसूर लोगो को जिस तरह से घेर कर मारा गया, उस घटना ने भगत सिंह को झकझोर कर रख दिया। जलीयांवाला बाग मे बच्चो, बूढ़ो, औरतों, और नौजवानो की भारी तादाद पर अंधाधुंध गोलियां बरसा कर अंग्रेज़ो ने अपने अमानवीय, क्रूर, और घातकी होने का सबूत दिया था। बंदूक  से निकली गोलियों से बचने के लिए मासूम लाचार लोग वहाँ ऊंची दीवारों से कूदने की कोशिस  करते रहे। बाग मे मौजूद पानी भरी बावली मे कूदने लगे। जान बचाने की अफरातफरी मे चीख पुकार करते उन लोगो पर ज़ालिम अंग्रेज़ो को अत्याचार करते ज़रा भी दया नहीं आयी।

जलीयांवाला बाग मे जब यह हत्याकांड हुआ तब भगत सिंह की उम्र केवल बारह साल थी। जलीयांवाला बाग हत्याकांड की खबर मिलते ही नन्हें भगत सिंह बारह मील दूर तक चल कर हत्याकांड वाली जगह पर पहुंचे। जलीयांवाला बाग पर हुए अमानवीय, बर्बर हत्याकांड के निशान चीख-चीख कर जैसे भगत सिंह को इन्सानियत की मौत के मंज़र की गवाही दे रहे थे।

महात्मा गांधी भी एक दिग्गज स्वतंत्रता सेनानी थे। सत्य बोलना, अहिंसा के मार्ग पर चलना, अपनी बात दूसरों से अच्छे तरीके से मनवाना, यह सब गांधीजी के अग्रिम गुण थे। महात्मा गांधीजी चौरीचौरा मे हुई हिंसात्मक कार्यवाही के चलते जब अंग्रेज़ो के खिलाफ छेड़ा हुआ असहयोग आंदोलन रद्द किया तब भगत सिंह और देश के कई अन्य नौजवानो के मन मे रोष भर गया। और तभी  भगत सिंह ने गांधीजी के अहिंसावादी विचार धारा से अलग पथ चुन लिया।

भगत सिंह एक स्पष्ट वक्ता और अच्छे लेखक थे। बचपन से ही क्रांतिकारी पात्रो पर लिखी गयी किताबे पढ़ने मे भगत सिंह को रुचि थी। भगत सिंह को हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी, और बंगाली भाषा का ज्ञान था।  एक आदर्श क्रांतिकारी के सारे गुण भगत सिंह मे थे। वह धार्मिक मान्यता मे यानी अर्चना पुजा मे ज्यादा विश्वास नहीं रखते थे। अगर ये कहा जाये के भगत सिंह नास्तिक थे तो गलत नहीं होगा।

वीर सावरकर ही वो इन्सान थे जिनके कहने पर भगत सिंह की मुलाक़ात चन्द्रशेखर आजाद जी से हुई थी। वीर सावरकर से भगत सिंह ने क्रांति और देशभक्ति के पथ पर चलने के कई गूढ  रहस्य सीखे। चन्द्रशेखर आजाद के दल मे शामिल होने के बाद कुछ ही समय मे भगत सिंह उनके दल के प्रमुख क्रांतिकारी बन गए।

काकोरी कांड के आरोप मे गिरफ्तार हुए तमाम आरोपीयो मे से चार को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी और, अन्य सोलह आरोपीयो को आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इस खबर ने भगत सिंह को क्रांति के धधकते अंगारे मे बदल दिया। और उसके बाद भगत सिंह ने अपनी पार्टी “नौजवान भारत सभा” का विलय “हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन”कर के नयी पार्टी “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन”का आहवाहन किया।

वर्ष 1928 मे साइमन कमीशन के विरोध मे पूरे देश मे प्रदर्शन रहे थे। और इसी के चलते एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन मे लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपतराय गंभीर रूप से घायल हुए। और फिर उनकी मृत्यु हो गयी।

भगत सिंह और उनके दल ने लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने के लिए स्काट को मारने की योजना बनायी। तारीख 17 दिसंबर 1928 को दोपहर सवा चार बजे लाहौर कोतवाली पर भगत सिंह, राजगुरु  जयगोपाल, चन्द्रशेखर, तैनात हुए, और स्काट की जगह सौन्डर्स को देख कर उसे मारने के लिए आगे बढ़ गए। क्यूँ की सौन्डर्स भी उसी ज़ालिम हुकूमत का एक नुमाइन्दा था। एक गोली राजगुरु  ने सौन्डर्स को कंधे पर मारी। फिर भगत सिंह ने सौन्डर्स को तीन चार गोलियां  मारी। और इस तरह सौन्डर्स को मार कर भगत सिंह और उनके साथियो ने लालजी की मौत का बदला लिया।

ब्रिटिश सरकार को भारत के आम आदमी, मजदूर, छोटे व्यवसायी, गरीब कामगार, वर्ग के दुख और तकलीफ़ों से कोई लेनदेना नहीं था। उनका मकसद सिर्फ भारत देश को लूटना, और भारत पर साशन करना था। अपने इसी नापाक इरादे के साथ ब्रिटिश सरकार मजदूर विरोधी बिल पारित करवाना चाहती थी। भगत सिंह, चंद्रशेखर और उनके दल को यह मंजूर नहीं था, की देश के आम इन्सान, जिनकी हालत पहले से ही गुलामी के कारण खराब थी, वो और खराब हो जाये। इस लिये योजना के मुताबिक दल की सर्व सम्मति से भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त का नाम एसम्ब्ली बम फेंकने के लिए चुना गया।

और फिर ब्रिटिश सरकार के अहम मजदूर विरोधी  नितियों  वाले बिल पर विरोध जताने के लिए भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केन्द्रीय एसम्ब्ली मे 8 अप्रैल 1929 को बम फेंके। बम फेंकने का मकसद किसी की जान लेना नहीं था। पर ब्रिटिश सरकार को अपनी बेखबरी भरी गहरी नींद से जगाना और बिल के खिलाफ विरोध जताना था। एसम्ब्ली मे फेंके गए बम बड़ी सावधानी से खाली जगह का चूनाव कर के फेंके गए थे। और उन बमो मे कोई जानलेवा विस्फोटक नहीं इस्त्माल किए गए थे। बम फेंकने के बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने इन्कलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाते हुए स्वैच्छित गिरफ्तारि दी।

चंद्रशेखर आज़ाद बम फेंक कर गिरफदारी देने के प्रस्ताव से ज़्यादा सहमत नहीं थे। क्योंकि  उन्हे लगता था के भगत सिंह की देश को आगे और ज़रूरत है। पर भगत सिंह ने द्रढ़ निश्चय कर लिया था, की उनका जीवन इतना ज़रूरी नहीं है, जितना अंग्रेज़ो के भारतीयो पर किए जा रहे अत्याचारो को विश्व के सामने लाना। एसम्ब्ली मे फेंके गए बम के धमाको की गूंज ब्रिटेन की महारानी के कानो तक भी पहुंची।

भगत सिंह ने अपने तकरीबन दो साल के जेल-कारावास के दौरान कई पत्र लिखे थे। और अपने कई लेख मे पूंजीपतियों की शोषण युक्त नितियों की कड़ी निंदा की थी। जेल मे कैदीयो  को कच्चे-पके खाने और अस्वछ निर्वास मे रखा जाता था। भगत सिंह और उनके साथियो ने इस अत्याचार के खिलाफ आमरण अनशन – भूख हड़ताल का आहवाहन किया। और तकरीबन दो महीनों (64 दिन) तक भूख हड़ताल जारी रखी। अंत मे अंग्रेज़ सरकार ने घुटने टेक दिये। और  उन्हे मजबूर हो कर भगत सिंह और उनके साथियो की मांगे माननी पड़ी। पर भूख हड़ताल के कारण क्रांतिकारी यातींद्रनाथ दास शहीद हो गए।

देश की आजादी के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना लड़ने वाले स्वतंत्रता सैनानी भगत सिंह राजगुरु  और सुखदेव को 23 मार्च 1931 की शाम करीब 7 बज कर 33 मिनिट पर फांसी दे दी गयी। भगत सिंह की फांसी के दिन उनकी उम्र 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन थी, और उन्हे जिस दिन फांसी दी गयी, उस दिन भी 23 तारीख थी। और कहा जाता है के इन तीनों क्रांतिकारियों को निर्धारित समय से पहेले ही फांसी दी गयी थी। ताकि देश के आम लोगो मे इस फैसले के खिलाफ क्रांति की ज्वाला ना भड़के। कहा जाता है के फांसी के दिन भगत सिंह क्रांतिकारी लेनिन की किताब पढ़ रहे थे। और फांसी पर चढ़ने जाने से पहेले उन्होने लेनिन की किताब को अपने सिने से लगा कर जलेर  (अधिकारी) से कहा था –

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